Friday, July 13, 2012

तेरी अनुपस्थिति में खुश हैं वे पक्षी

तेरी अनुपस्थिति में खुश हैं वे पक्षी
रिक्त है उनके विश्राम के लिए तेरे अहाते की डोरियाँ
कल तक सूखा करता था जिस पर भीगा हुआ
एक सफेद दुपट्टा

घौंसले में दुबके बया के बच्चों की नींद
आज नही टूटी बर्तनों के शोर से
आज भी बच्चे उलझ गये थे तेरी गली में
काँच की गोटियों के लिए
पर आज बालकनी से नही हँसा
खिलखिलाकर कोई भी
आज नही हैं कंघी में फँसे हुए
तेरे केशों के गुच्छे
आज दुपहरी को भी फेरी वाले
बेर लिए लगा रहे थे आवाज़
पर आज कोई नही था खड़ा
तेरे घर की चौखट पर ऐडी उठाएँ

अहाते के नीम पर बेखौफ़ गूँज रही थी
कौओ की कांव कांव
और देर तक दूबका रहा था मैं भी
अपनी रज़ाई में
नही सुनी एक भी सिसकी
सर्द सुबह में तेरे लौट जाने के गम की

कितनी सहजता से
स्वीकार कर रही थी यह प्रकृति
तेरी अनुपस्थिति को

अब चैन से करेंगे रैन-बसेरा
तेरे घर की दीवारों पर चमगादड़
आज रात निकलेंगे दुबके चूहे बिलों से बाहर
कुतरेंगे उन तकियों को जिनमें बसी हैं तेरी केश गंध
चींटों की पंक्तियाँ अब कभी न टूटेगी
तेरे फहराते आँचल के छोर से
वे अब इत्मिनान से करेंगे इकट्‌ठे
अपने बिलों में अन्नो के दाने

सदियों बाद
मैं बिना इंतज़ार सो पाऊँगा

-अहर्निशसागर-

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