हमारा ईश्वर
सिर्फ शांति-काल में जिन्दा होता हैं
युद्ध के चरमोत्कर्ष में सिर्फ
शहर के शराबखाने रोशन मिलते हैं
और ये एक युद्ध की कहानी हैं
या कहूँ , ये एक शहर की कहानी हैं
क्या फर्क पड़ता हैं , जो कहूँ
ये कहानी सिर्फ उन चार लोगो की कहानी हैं
जो धरती के चार कोनों से आये हैं
वे चारो शराबखाने के कोने में बैठकर
युद्ध के कारणों पर विमर्श करते हैं
विमर्श करते हैं समाजवाद पर
और गलाफाड़ बहस होती हैं
पूंजीवाद के उन्मूलन पर
और अंततः सिर्फ एक बात पर
सहमति में सिर हिलाते हैं
की
जिन्दगी एक लत हैं
और शराब की तरह कडवी भी ..!!
-अहर्निशसागर -
कितनी सुन्दर ...हर सुबह का आगाज़ काश ऐसा हो ...
ReplyDeleteवाह ...अंतिम दो पंक्तियों में सारी रवानी ...पूरी कहानी .....या कहें कि ..बस .....अंततः ऐसा ही ...बहुत सुंदर ....अभिव्यक्ति ....
ReplyDeleteजिन्दगी एक लत हैं
ReplyDeleteऔर शराब की तरह कडवी भी...
इसे फेसबुक पर भी पढ़ा था,सुंदर है
बेहतरीन....
ReplyDeleteअनु