Tuesday, July 31, 2012

खिड़कियाँ















यह अंतहीन आकाश
धरती पर फैली
असंख्य खिडकियों में वितरित हैं

हमारे पास हमारी खिड़कियाँ हैं
खिडकियों के हिस्से में हमारा आकाश हैं
हम अपनी खिडकियों के लिए लड़ते हैं
हम लड़ते हैं खिडकियों के हिस्से आये आकाश के लिए

हम छोटे से छोटे सुराख़ के लिए भी लड़ेंगे

बेशक,
हम अपूर्ण के लिए लड़ते हैं
पर हमारा "लड़ना"
आकाश की तरह अंतहीन हैं

-अहर्निशसागर-

6 comments:

  1. yeh khubsurat ehsas hi toh humein jinda rakhtein hai....beautifully expressed!

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  2. Bahut umda !!...very true !!

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  3. एक सामान्य सी घटना.. और एक असामान्य दृष्टिकोण.. बधाई !!

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