Thursday, July 11, 2013

ब्रह्मांड की वालिदा














मेरे घर में
मैं गेहूं के बीच पारे की तरह गिरा हुआ हूँ
पाटों के बीच पीसे जाने से पहले
एक स्त्री के हाथ मुझे बचा लेंगे
____

उसके साहचर्य के ख़ातिर
मैं जीवन की सरहद पर रहा
इतना कमतर था जीवन
की उस स्त्री का माकूल हिस्सा
मृत्यु की हद में रह गया था
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हे ब्रह्मांड की वालिदा !
तुमनें क्या सोच कर
मेरे छोटे से घर में
मेरा झूठन खाया था ?
____

"बुलबुल,
बसंत की प्रेमिका
पतझड़ की पुत्री
अपने नाम के बरक्स कितनी छोटी ?
अपने हिस्से की जगह जीवन को पुन: सौंप कर
धरती से लगभग गायब सी"
उसने बताया मुझे--
एक पुरुष को बुलबुल की तरह होना चाहिए
____

मैं दुःख में जितना
दारुण हो जाता हूँ
वह उतनी ही करुण हो जाती हैं
एक सभ्यता का क्षरण हो रहा हैं
और क्या हो सकता था
एक स्त्रिविहिन सभ्यता के साथ ?



-अहर्निशसागर-

1 comment:

  1. हे ब्रह्मांड की वालिदा !
    तुमनें क्या सोच कर
    मेरे छोटे से घर में
    मेरा झूठन खाया था ?

    Speechless!!!

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