Wednesday, February 3, 2016

जो हमारा पुल बनती हैं

















एक स्वप्न में पुल पार करता हूँ
दो कदम आगे चलता हूँ
पुल पीछे दो कदम ढह जाता हैं
पुल पार होते ही, पूरा नदी में ढह जाता हैं
एक उम्र में जब स्त्रियों को देखता हूँ
तो लगता हैं
स्त्रियां कभी बूढी नहीं होती
वे पुल बन जाती हैं
हम उन्हें पार करते हैं और वे समय की नदी में ढह जाती हैं
बच्चे बगीचों में झूलों पर झूलते हैं
सहसा कहीं से पिता की आवाज सुनाई पड़ती हैं
वे दौड़ कर पिता के पास चले जाते हैं
खाली झूला बगीचे के एकांत में झूलता रहता हैं
घर की बुजुर्ग स्त्री
घर के एक कोने में माला जपते हुए आगे-पीछे झूल रही हैं
कहीं से पिता की आवाज आई होगी
कुछ था जो दौड़ता हुआ पिता के पास चला गया
और उस स्त्री की देह संसार के बगीचे में झूलती हुई छूट गई
झूले भी हवा में बना पुल होते हैं
जो नीरवता के दो अज्ञात किनारों को छूते हैं
जब वे ठहर जाते हैं, वे ढह जाते हैं
आखिरी स्त्री जो हमारा पुल बनती हैं
पार करने की उकताहट से भर चूका मैं
उसे पार नहीं करूँगा
उसके साथ ढह जाऊंगा।

2 comments:

  1. ढेर सारा प्यार व् आशीर्वाद अहर्निश

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  2. एक ठहरा हुआ गतिमान मन हूँ ...ढ़ह जाऊँगा...बह जाऊँगा ...

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