Tuesday, August 4, 2015

प्रेम रहा, लेकिन इतना निस्पंद











उपन्यास
एक लंबी कथा होती हैं प्रिय !
लेकिन यह एक वृक्ष की आत्मकथा थी
वहीँ खड़ा
वहीँ बढ़ा
वहीँ ठूंठ हुआ


सिर्फ दो ही मौसम थे
पतझड़, जिसमें बाहर की तरफ झरता
एक बसंत, जिसमें भीतर की तरफ झरता

इतना नीरस जीवन था
कि एक कविता तक की जगह नहीं थीं
प्रेम रहा, लेकिन इतना निस्पंद
कि स्मृतियों में टांगने के लिये
एक गर्म सांस तक नहीं हैं

इतना धीरे....
इतना धीरे करीब आना हुआ
कि हम अंत के बाद ही मिल सके ।

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