अंतिम सुख में
कितनी पीड़ा होती हैं !
नदी में घुटनों तक उतर कर
तुम्हें अंतिम बार चूमता हूँ
और डोंगी को अनंत कि ओंर धकेल देता हूँ
इस घाटी में बसे गाँव के चारो ओंर
कितनी पहाड़ियां हैं और उनके शिखर हैं
लेकिन मैं उन्हें फतह नहीं करूँगा
चढूंगा और उस पार उतर जाऊँगा
उस पार भी गाँव हैं गड़रिये हैं और घास हैं
अनंत कि तरफ जा चुके लोग कहीं भी मिल सकते हैं,
हर गाँव में, गड़रियों में, घास में
कहीं भी मिल सकते हैं, मसलन
एक डोंगी रेत पर तैरती हुई भी मेरी तरफ आ सकती हैं
पहली सांस लेते हुए
कितनी पीड़ा होती हैं नवजात को
अंतिम निःश्वास में राहत होगी
जो अंतिम दुःख होगा
सुख कि तरह होगा ।
-अहर्निशसागर-
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