Thursday, July 11, 2013

यथार्थ












यथार्थ के पास "यथार्थ" की कोई कल्पना नहीं होती
सारी कल्पनाएँ "कल्पनाओं" की कल्पनाएँ हैं
अगर तुम सचमुच समंदर से प्रेम करती हो
तो एक मछली बन जाओ !


-अहर्निशसागर-

रहस्य














रहस्य "रहस्य" बना हुआ हैं
और हम सब अपने सच्चे अर्थों में झूठे हैं
ठीक ईश्वर की तरह !


-अहर्निशसागर-

अन्तराल का भ्रम














अन्तराल का भ्रम
मरीचिका की तरह हमेशा एक अन्तराल पर बना रहता हैं
मेरी माँ मरने से पहले उम्र में मुझसे छोटी हो गई थी
उसने मेरी छाती पर सर रखा
और मैंने मृत्यु से पहले मेरी माँ को बार-बार जन्म दिया
यह वियोग नहीं था
मेरे भविष्य का भुत में विलय था !
 

-अहर्निशसागर-

ब्रह्मांड की वालिदा














मेरे घर में
मैं गेहूं के बीच पारे की तरह गिरा हुआ हूँ
पाटों के बीच पीसे जाने से पहले
एक स्त्री के हाथ मुझे बचा लेंगे
____

उसके साहचर्य के ख़ातिर
मैं जीवन की सरहद पर रहा
इतना कमतर था जीवन
की उस स्त्री का माकूल हिस्सा
मृत्यु की हद में रह गया था
____

हे ब्रह्मांड की वालिदा !
तुमनें क्या सोच कर
मेरे छोटे से घर में
मेरा झूठन खाया था ?
____

"बुलबुल,
बसंत की प्रेमिका
पतझड़ की पुत्री
अपने नाम के बरक्स कितनी छोटी ?
अपने हिस्से की जगह जीवन को पुन: सौंप कर
धरती से लगभग गायब सी"
उसने बताया मुझे--
एक पुरुष को बुलबुल की तरह होना चाहिए
____

मैं दुःख में जितना
दारुण हो जाता हूँ
वह उतनी ही करुण हो जाती हैं
एक सभ्यता का क्षरण हो रहा हैं
और क्या हो सकता था
एक स्त्रिविहिन सभ्यता के साथ ?



-अहर्निशसागर-