मैं प्रेम करना चाहता हूँ प्रिय, "प्रेम "
जैसे खेडुत हल उठाये अपने कंधो से करता हैं
जैसे दसिया बैल अपने मजबूत सींगों से करता हैं
प्रेम, जो हल्की बारिश के बाद भी
मेंढकों की तरह टर्राने लगता हैं
प्रेम, जो सस्ते शराबखानों में
आवारा कुत्तों की तरह उपेक्षित ऊँघता रहता हैं
प्रेम, जो भरपेट खा लेने के बाद भी
थाली के कोने में अचार की तरह शेष रह जाता हैं
प्रिय , मेरा प्रेम तुझे अभावों के पाटों के बीच
पिसे हुए आटे की तरह मिलेगा
जिसमें फकत रूहानियत का जिक्र नहीं होगा
जिसमें अलगाव, विरह और हमारा विलाप होगा
प्रेम, जो दो देहों को लील जायेगा
हमारी हड्डिया जूतों के तलवों की तरह घिस जायेगी
हम इस अभावग्रस्त समाज में
लकवा खाए प्रेम को
व्हील चेयर पर जिन्दा रखेंगे , प्रिय
हो सकता हैं हमें
निर्जन टापुओं पर छोड़ दिया जाएँ
ऐसे मुश्किल वक़्त में भी
वक्षों को ढकने के लिए वृक्षों के पत्ते होंगे
श्रृंगार के लिए पोखर की मिट्टी होगी
अगर हमारी जुबानें तक काट दी गयी
फिर भी हम प्रेम के सन्दर्भ में
इशारा करेंगे उगते सूरज की ओर
-अहर्निशसागर-
यूँ प्यार न किया तो क्या प्यार किया !!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ....
अनु
प्रिय , मेरा प्रेम तुझे अभावों के पाटों के बीच
ReplyDeleteपिसे हुए आटे की तरह मिलेगा
.....................
अगर हमारी जुबानें तक काट दी गयी
फिर भी हम प्रेम के सन्दर्भ में
इशारा करेंगे उगते सूरज की ओर
......प्रेम की ये पराकाष्ठा ...बहुत खूबसूरत ....//
और ये पंक्तियाँ ....जैसे भीतर से पूरी तरह निचोड़ लेती हैं किसी भाव को ...अह्ह्ह्ह्ह
लकवा खाए प्रेम को
व्हील चेयर पर जिन्दा रखेंगे , प्रिय...
रोजमर्रा की वस्तुओं से प्रेम के संदर्भ को...बखूबी बयाँ ....
इसे पढकर शायक की कविता याद आ गई ...." यार ..ये कविता नही प्लिज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज़ ...." बधाई ....
प्रिय , मेरा प्रेम तुझे अभावों के पाटों के बीच
ReplyDeleteपिसे हुए आटे की तरह मिलेगा.....
.....................
अगर हमारी जुबानें तक काट दी गयी
फिर भी हम प्रेम के सन्दर्भ में
इशारा करेंगे उगते सूरज की ओर
........अनंत ....
लकवा खाए प्रेम को
व्हील चेयर पर जिन्दा रखेंगे , प्रिय
ये कहना ..जैसे निचोड़ लिया जाये ....एक भाव ...ये कहना जितना मुश्किल ....शायद स्थितियों से गुजरना बहुत मुश्किल ...अह्हह्ह ....
अच्छी उपमाएं ....अचार की तरह शेष ...
अच्छी ...खूबसूरत ...आह ...वाह जैसा कुछ नही केह पाऊँगी ....विचारणीय रचना .../
अच्छी उपमाएं ....अचार की तरह शेष .../इससे शायक की कविता याद आती है ..." यार ..ये कविता नही प्लिज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ..........!!"
हम इस अभावग्रस्त समाज में
ReplyDeleteलकवा खाए प्रेम को
व्हील चेयर पर जिन्दा रखेंगे , प्रिय
यहां किया आपने अद्भुत कमाल......
Bahut khoob likha hai aapne. .nishabd hu mei. .
ReplyDeleteप्रेम, जो सस्ते शराबखानों में
ReplyDeleteआवारा कुत्तों की तरह उपेक्षित ऊँघता रहता हैं..
अक्सर, बेटा तुमने पहली कविता कब लिखी????
sunder
ReplyDeletehaan prem zaroor karo....kuchh sapne tootne bahut zaroori hote hain Aharnsih
naaz