चींटियों के पास विशाल देह हैं
और हमसे मजबूत हड्डियाँ
भीमकाय जीव विलुप्त हो गए
चींटियाँ बची हुई हैं
तुम देखना, एक रोज़
हमारी हड्डियों में
चींटियों के बिल मिलेंगे
• • •
हमारी किताबें / कवितायें
प्रेम से भरी पड़ी हैं
और जमीन
खून से लथपथ
• • •
अंत में जानोगे
की जो लिखा तुमने
वह जिन्दगी को लिखा माफ़ीनामा था
और मृत्यु की प्रच्छन्न प्रसंशा
कुछ तो है... कुछ तो है खास तुम्हारे लिखने में...
ReplyDeleteLove to read your blog every time.
ReplyDeleteyour welcome any time
ReplyDeleteयह अकारण तो नहीं था
ReplyDeleteकी हजारो हजारो लोग
महकते बदन और बिलखते बच्चे छोड़
जंगलो में चले गए
हमारी किताबें / कवितायें
ReplyDeleteप्रेम से भरी पड़ी हैं
और जमीन
खून से लथपथ
lazawaab........
तुम जैसे
ReplyDeleteबस 'तुम' ही हो....
कुछ और टुकड़े????
ReplyDeleteभूख अभी बाकी है....
अनु
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ReplyDeleteक्या कहूँ ....क्या छोड़ दूँ ....बस कमाल है !
ReplyDeletenishabd...bas aage kuchh nahi..
ReplyDeleteवाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .
ReplyDeleteवाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .
ReplyDeleteवाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .
ReplyDeleteबहुत बार कविता माफीनामा ही होती है,
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ReplyDeleteबेजुबान करते शब्दों के टुकड़े हैं ...कमाल!!
ReplyDeleteये तो कमाल है ..... विशुद्ध कमाल
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