Friday, August 17, 2012

अंत में














चींटियों के पास विशाल देह हैं
और हमसे मजबूत हड्डियाँ
भीमकाय जीव विलुप्त हो गए
चींटियाँ बची हुई हैं
तुम देखना, एक रोज़
हमारी हड्डियों में
चींटियों के बिल मिलेंगे

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हमारी किताबें / कवितायें
प्रेम से भरी पड़ी हैं
और जमीन
खून से लथपथ 

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अंत में जानोगे
की जो लिखा तुमने
वह जिन्दगी को लिखा माफ़ीनामा था
और मृत्यु की प्रच्छन्न प्रसंशा

-अहर्निशसागर-

17 comments:

  1. कुछ तो है... कुछ तो है खास तुम्हारे लिखने में...

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  2. Love to read your blog every time.

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  3. यह अकारण तो नहीं था
    की हजारो हजारो लोग
    महकते बदन और बिलखते बच्चे छोड़
    जंगलो में चले गए

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  4. हमारी किताबें / कवितायें
    प्रेम से भरी पड़ी हैं
    और जमीन
    खून से लथपथ


    lazawaab........

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  5. तुम जैसे
    बस 'तुम' ही हो....

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  6. कुछ और टुकड़े????
    भूख अभी बाकी है....

    अनु

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  7. क्या कहूँ ....क्या छोड़ दूँ ....बस कमाल है !

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  8. वाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .

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  9. वाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .

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  10. वाह !! मन झझकोरते हैँ आपके शब्द. . एक रौ मेँ बहते चले जाना है आपको पढ़ना. .

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  11. बहुत बार कविता माफीनामा ही होती है,

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  12. This comment has been removed by the author.

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  13. बेजुबान करते शब्दों के टुकड़े हैं ...कमाल!!

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  14. ये तो कमाल है ..... विशुद्ध कमाल

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