Monday, August 27, 2012
Friday, August 24, 2012
कविता जानती हैं
कविताओं के साथ सम्बन्धों की शरुआत
तुम्हारे सामान्य दु:खों की स्वीकारोक्ति से होगी
वे मामूली दु:ख जिन्हें इतना भोगा गया
कि वे आम हो गए
दु:ख, जिन्हें भोग कर तुम सुन्न हो गए
कविता उन्हें सुनते ही संजीदा हो जायेगी
मसलन, बताओ उसे की तुम नहीं देख पाए
कब और कैसे तुम्हारे बच्चे
किवाड़ों की सांकल पकड़ कर खड़े हुए
और चलना सिख गए
कब तुम्हारी जवान बेटी को
बिलकुल तुम्हारी तरह कुछ दांयी ओर मुड़ी
नाक वाले लडके से प्यार हो गया
अगर तुम उससे सिर्फ इतना कहो
जीवन के इस पड़ाव में तुम अकेले रह गए
कविता, गिलहरी के बालों से बना ब्रश लेकर
तुम्हारे चहरे की झुर्रियों पर जमी धुल साफ़ करेगी
मानो तुम खुदाई में मिला मनुष्यता का एकमात्र अवशेष हो
तुम बताओ अपनी कविताओं को
कि बचपन से तुम इतने निराशावादी नहीं थे
अपने बाड़े में बोये थे तुमने बादाम के पेड़
जिन्हें अकाल वाले साल में बकरियां चर गयी
कि उस शहर में जब तुमने किराये पर कमरा लिया
मकान मालिक ने मना किया था
कि तुम खिड़कियाँ नहीं खोल सकते
जबकि कविता जानती हैं
तुम बिना दरवाजे खोले जिन्दगी गुजार सकते हो
पर खिडकियों का खुलना कितना जरूरी था तुम्हारे लिये
तुम बैठो कविता के साथ बगीचे के उस कोने में
जहाँ सबसे कम हरी घास हो
जहाँ अरसे से माली ने नहीं कि
मेहंदी के पौधों कि कटाई-छटाई
जहाँ कुर्सिओं के तख्ते उखड़े पड़े हो
उस जगह जहाँ सबसे कम चहल-पहल हो
और बताओ उसे
कि जब तुम जीने के मायने समझे
तुम अस्सी पार जा चुके थे
कविता जानती हैं
कि इन आम से दु:खों को भोगना
उतना ही मुश्किल हैं जितना
हादसे में मारे गए पिता के
अकड़ चुके जबड़े में उंगली फंसाकर गंगाजल उडेलना
और हुचक-हुचक कर रोती
विधवा हो चुकी माँ को चुप कराना
कविता जानती हैं यह तथ्य
कि सारी कविताएँ किसी अनसुने दु:ख का
विस्तृत ब्यौरा हैं
-अहर्निशसागर-
Friday, August 17, 2012
अंत में
चींटियों के पास विशाल देह हैं
और हमसे मजबूत हड्डियाँ
भीमकाय जीव विलुप्त हो गए
चींटियाँ बची हुई हैं
तुम देखना, एक रोज़
हमारी हड्डियों में
चींटियों के बिल मिलेंगे
• • •
हमारी किताबें / कवितायें
प्रेम से भरी पड़ी हैं
और जमीन
खून से लथपथ
• • •
अंत में जानोगे
की जो लिखा तुमने
वह जिन्दगी को लिखा माफ़ीनामा था
और मृत्यु की प्रच्छन्न प्रसंशा
-अहर्निशसागर-
Monday, August 13, 2012
प्रेम करना चाहता हूँ
मैं प्रेम करना चाहता हूँ प्रिय, "प्रेम "
जैसे खेडुत हल उठाये अपने कंधो से करता हैं
जैसे दसिया बैल अपने मजबूत सींगों से करता हैं
प्रेम, जो हल्की बारिश के बाद भी
मेंढकों की तरह टर्राने लगता हैं
प्रेम, जो सस्ते शराबखानों में
आवारा कुत्तों की तरह उपेक्षित ऊँघता रहता हैं
प्रेम, जो भरपेट खा लेने के बाद भी
थाली के कोने में अचार की तरह शेष रह जाता हैं
प्रिय , मेरा प्रेम तुझे अभावों के पाटों के बीच
पिसे हुए आटे की तरह मिलेगा
जिसमें फकत रूहानियत का जिक्र नहीं होगा
जिसमें अलगाव, विरह और हमारा विलाप होगा
प्रेम, जो दो देहों को लील जायेगा
हमारी हड्डिया जूतों के तलवों की तरह घिस जायेगी
हम इस अभावग्रस्त समाज में
लकवा खाए प्रेम को
व्हील चेयर पर जिन्दा रखेंगे , प्रिय
हो सकता हैं हमें
निर्जन टापुओं पर छोड़ दिया जाएँ
ऐसे मुश्किल वक़्त में भी
वक्षों को ढकने के लिए वृक्षों के पत्ते होंगे
श्रृंगार के लिए पोखर की मिट्टी होगी
अगर हमारी जुबानें तक काट दी गयी
फिर भी हम प्रेम के सन्दर्भ में
इशारा करेंगे उगते सूरज की ओर
-अहर्निशसागर-
Wednesday, August 1, 2012
एक सदी का इतिहास
पिता के जन्म से लेकर
मेरे बुढ़ापे तक
मेरे पास एक सदी का इतिहास है
मैं आपको इसका संक्षिप्त ब्यौरा दूंगा
मेरे पिता के बचपन में भी
बरसाती पतंगे मर जाया करते थे
सरसों के दीये में गिरकर
लालटेन के गर्म शीशे से चिपक कर
मेरे बुढ़ापे में भी
बरसाती पतंगे मर रहे हैं
स्टेडियम की विशाल होलोजन बत्तियों तले
महानगरों की स्ट्रीट लाइट्स तले लाशों के ढेर पड़े हैं
विगत सालो मे रौशनी बहुत तेज़ हो गयी हैं
और बेहद बढ़ गई हैं
पतंगों के मरने की तादाद
-अहर्निशसागर-
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