Friday, June 6, 2014

अगर यह पृथ्वी बच्चों को सौंप दी जाएँ












अगर यह पृथ्वी बच्चों को सौंप दी जाएँ
वे अमूमन हर चीज को खिलौने में बदल देंगे

ज्वर से तपता हुआ बच्चा पिता से दवा नहीं
खिलौने मांगता हैं
पिता उसके हाथ में रंगीन कपडे की
झूठमुठ की चिड़ियाँ देते हैं
और पुचकार कर मुंह में दवा का ढक्कन उड़ेल देते हैं
तन्मयता और धन्यता से भरे हुए
साहस और डर का मिश्रण
इन्हें कभी हत्या के लिए नहीं उकसाता

एक स्त्री पृथ्वी के नीरव कोने में
जब अकेली खड़ी सुबक रही होगी
एक बच्चा उसके पैरों से लिपटा हुआ होगा

कोई युद्ध जब राष्ट्र को एकजुट कर रहा होगा
उस एकजुट होते राष्ट्र में बच्चे इस तरह बिखर जायेंगे की फिर कभी नहीं मिलेंगे
वे गुपचुप एक रंगीन कपडे की चिड़िया की आड़ में
इस तरह बड़े हो रहें होंगे
जैसे लुप्त हो रहे हैं ।


-अहर्निशसागर- 

अंतिम सुख में












अंतिम सुख में
कितनी पीड़ा होती हैं !
नदी में घुटनों तक उतर कर
तुम्हें अंतिम बार चूमता हूँ
और डोंगी को अनंत कि ओंर धकेल देता हूँ

इस घाटी में बसे गाँव के चारो ओंर
कितनी पहाड़ियां हैं और उनके शिखर हैं
लेकिन मैं उन्हें फतह नहीं करूँगा
चढूंगा और उस पार उतर जाऊँगा
उस पार भी गाँव हैं गड़रिये हैं और घास हैं

अनंत कि तरफ जा चुके लोग कहीं भी मिल सकते हैं,
हर गाँव में, गड़रियों में, घास में
कहीं भी मिल सकते हैं, मसलन
एक डोंगी रेत पर तैरती हुई भी मेरी तरफ आ सकती हैं

पहली सांस लेते हुए
कितनी पीड़ा होती हैं नवजात को
अंतिम निःश्वास में राहत होगी
जो अंतिम दुःख होगा
सुख कि तरह होगा ।


-अहर्निशसागर-