स्मृतियों में
माँ हमेशा खाली घड़ा लिए हुए
पंचायत भवन के नलके कि तरफ जाती हुई दिखाई देती हैं
माँ खाली घड़ा लिए हुए जीवनभर मीलों चली हैं
इस तरह उसने सूखी गृहस्थी को नम रखा हैं
उसके चलने कि कुल गिनती करूँ तो
सूर्य के चारो तरफ पृथ्वी कि कक्षा से अधिक दूरी बैठेगी
अगर माँ आगे-आगे चलने को तैयार हो
मैं पीछे-पीछे घड़ा लिए दूर-दिगंत तक जा सकता हूँ
सारे समंदरों को आँगन के हौज में खाली कर सकता हूँ
फिर भी मेरी जांघों में जो ख़म हैं
वह उस सामर्थ्य का आधा भी नही हैं
जिस मजबूती से माँ घड़े जितने वजनी गर्भ में मुझे लिए
पृथ्वी के खिंचाव के विरुद्ध पुरे नौ महीने तक संसार में खड़ी रही
कद-काठी से माँ कुछ बटकी थी
जब वह चिता पर लेटी, कुल नौ डग में ही
मैंने घड़ा लिए चिता कि परिक्रमा पूरी कर ली
माँ को मृत्यु के घर कि चौहद्दी तक छोड़ आया
लेकिन मृत्यु के घर भी माँ खाली कहाँ बैठी होगी
अज्ञात आयामों में खाली घड़ा लिए निकल गई होगी
देर-सबेर जीवन कि चौहद्दी को लाँघ कर
मैं भी मृत्यु के घर में प्रवेश करूँगा
वहाँ माँ तो शायद नही मिलेगी
लेकिन हो सकता हैं
जीवन जी चुकने के बाद लगी प्यास को
तर करने के लिए
पळींडे में रखा पानी से भरा एक घड़ा मिले।
-अहर्निशसागर
Jiyo Bachche .....Dhero Aashirwad
ReplyDelete................................Tumahari Dee