Thursday, December 19, 2013
भविष्य लौटता हैं मेरी तरफ
भविष्य लौटता हैं मेरी तरफ
रण भूमि से लंगड़ाते हुए उस घोड़े की तरह
जिसकी पीठ पर सेनापति की लाश हैं
वृतमान के कौनसे वार नें घोड़े को घायल किया ?
अतीत की कौनसी गलती से सेनापति मारा गया ?
मैं नहीं जानता
कायर राजा की तरह
बार-बार शराब गटकता हूँ
और झरोखे से झांकता हूँ
सोचता हूँ
भविष्य चाहे एक हो लेकिन
मेरे पास घायल होने के लिये असंख्य घोड़े हो
मारे जाने के लिए असंख्य सेनापति ।
-अहर्निशसागर -
धैर्य / समर्पण / आज्ञा
धैर्य
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तो सवाल धैर्य कितना ?
सुखी घास में शिकार कि ताक में दबे हुए
तेंदुए जितना धैर्य
अर्थात छलांग के साहस जितना धैर्य
मृत्यु कि सरहद पर देर-सबेर एक फूल खिलेगा
उसके खिलने के इन्तजार जितना धैर्य
और खिलते ही छलांग जितना अधैर्य ।
समर्पण
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वृक्ष कि तरह अरण्य को अंगीकार कर लेना
हरीतिमा के केंद्र से पत्ते कि तरह किनारों को
पीला होते देखना
और पतझड़ के प्रथम प्रहर में ही झड़ जाना
चाहे जीवन भरा हो
सुख से लबालब
प्यासा गला मिले तो सहसा उलीच देना।
आज्ञा
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जीवन कभी रंगरूट कि तरह
एड़िया पटक कर सलामी नहीं देता
जीवन अराजक होता हैं
सिर्फ़ कारतूस के समानांतर चलती
मृत्यु अनुशासित हो सकती हैं
आज्ञा देने से पहले
मुझ पर गोली दाग दो।
-अहर्निशसागर-
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