चित्रकार स्याह करता जा रहा हैं अपने रंगों को
लगता हैं दुनियां तेज़ रौशनी से भर चुकी हैं
विदा की यात्रा अब शुरू होती हैं
विदा !
जैसे बच्चे सेंध लगाते हैं संतरों के बगीचे में
मैंने सेंध लगाई वर्जित शब्दों के लिए
सभ्यता के पवित्र मंदिर में
संतरे के पेड़ों की जड़ें पृथ्वी के गर्भ तक जाती थी
और पृथ्वी की जड़ें जाती हैं सूरज के गर्भ तक
और अगर सूरज दीखता रहा संतरे जैसा
तो मैं निश्चिंत हूँ, बच्चे उसे सेंध लगा के बचा लेंगे
चींटियों के हवाले करता हूँ
पृथ्वी को, मेरे बच्चों को, समूचे जीवन को
चींटियाँ काफी वजन उठा लेती हैं
अपने वजन से भी ज्यादा
तो मैं निश्चिंत हूँ,
प्रलय से ठीक पहले
चींटियाँ सुरक्षित खींच ले जायेगी पृथ्वी को
बेहद कमजोर पर भरोसा करके
कहता हूँ "विदा"
-अहर्निशसागर-
कमजोर पर िवशवास का बौझ रख कर िवदा कहना .....अपने भरोसे
ReplyDeleteपर यकीन कर जीत हािसल करना है । ... बेहतरीन